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ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा | शाही शायरी
zindagi kya hai ek safar ke siwa

ग़ज़ल

ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा

सूफ़ी तबस्सुम

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ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा
एक दुश्वार रहगुज़र के सिवा

क्या मिला तिश्ना-ए-मोहब्बत को
एक महरूम सी नज़र के सिवा

इश्क़ के दर्द की दवा क्या है
सब समझते हैं चारा-गर के सिवा

कुछ नहीं ग़म-गुसारी-ए-अहबाब
एहतिमाम-ए-ग़म-ए-दिगर के सिवा

कितनी तन्हा थीं अक़्ल की राहें
कोई भी था न चारा-गर के सिवा

दौलत-ए-सज्दा हो सकी न नसीब
और भी दर थे तेरे दर के सिवा

कुछ नहीं है फ़ुसूँ-तराज़ी-ए-हुस्न
इश्क़ की शोख़ी-ए-नज़र के सिवा