ज़िंदगी क्या है इब्तिला के सिवा
शिकवा-ए-दर्द-ए-ला-दवा के सिवा
तेरी दुनिया में क्या नहीं मिलता
इक दिल-ए-दर्द-आश्ना के सिवा
चारा-ए-दर्द-ए-ज़िंदगी क्या है
आह-ए-जाँ-काह-ओ-इल्तिजा के सिवा
कुछ नहीं इख़्तियार में अपने
बंदगी के सिवा दुआ के सिवा
मैं ने हर बात उन से कह डाली
लेकिन इक हर्फ़-ए-मुद्दआ' के सिवा
मेरी इमदाद सब ने फ़रमाई
वाइज़-ओ-ज़ाहिद-ओ-ख़ुदा के सिवा
कौन समझेगा इन हक़ाएक़ को
'शो'ला'-ए-रिंद-ए-पारसा के सिवा
ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है इब्तिला के सिवा
द्वारका दास शोला