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ज़िंदगी की सख़्त ज़ंजीरों में जकड़ा देख कर | शाही शायरी
zindagi ki saKHt zanjiron mein jakDa dekh kar

ग़ज़ल

ज़िंदगी की सख़्त ज़ंजीरों में जकड़ा देख कर

मैकश नागपुरी

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ज़िंदगी की सख़्त ज़ंजीरों में जकड़ा देख कर
आज तुम भी हंस रहे हो मुझ को तन्हा देख कर

अब तो वो भी मुझ से कतरा कर गुज़र जाने लगे
मेरे माहौल-ए-परेशानी का नक़्शा देख कर

हौसला किस में था जो देता बराबर का जवाब
सब्र करना ही पड़ा उन का रवय्या देख कर

आज तुझ को भी हँसी आने लगी ऐ बाग़बाँ
नौजवाँ फूलों के अरमानों को प्यासा देख कर

अहल-ए-साहिल रो रहे हैं क़तरे क़तरे के लिए
ज़र्फ़-ए-दरिया रो रहा है ज़र्फ़-ए-दरिया देख कर

मेरी आँखों से भी 'मैकश' गिर पड़े अश्क-ए-अलम
पीर-ए-मय-ख़ाना को तन्हाई में रोता देख कर