ज़िंदगी ख़्वाहिशों का मक़्तल है
दिल की दुनिया में एक हलचल है
होश की हद में रह नहीं सकता
बरतरी का मरीज़ पागल है
ख़ैर-ख़्वाही की घास के नीचे
मस्लहत की ग़लीज़ दलदल है
और इक चोट दीजिए मुझ को!
मेरी तकलीफ़ ना-मुकम्मल है
ऐ 'असर'! ख़ैरियत का दरवाज़ा
साल-हा-साल से मुक़फ़्फ़ल है
ग़ज़ल
ज़िंदगी ख़्वाहिशों का मक़्तल है
साजिद असर