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ज़िंदगी ख़्वाहिशों का मक़्तल है | शाही शायरी
zindagi KHwahishon ka maqtal hai

ग़ज़ल

ज़िंदगी ख़्वाहिशों का मक़्तल है

साजिद असर

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ज़िंदगी ख़्वाहिशों का मक़्तल है
दिल की दुनिया में एक हलचल है

होश की हद में रह नहीं सकता
बरतरी का मरीज़ पागल है

ख़ैर-ख़्वाही की घास के नीचे
मस्लहत की ग़लीज़ दलदल है

और इक चोट दीजिए मुझ को!
मेरी तकलीफ़ ना-मुकम्मल है

ऐ 'असर'! ख़ैरियत का दरवाज़ा
साल-हा-साल से मुक़फ़्फ़ल है