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ज़िंदगी ख़राब हो गई | शाही शायरी
zindagi KHarab ho gai

ग़ज़ल

ज़िंदगी ख़राब हो गई

दीपक शर्मा दीप

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ज़िंदगी ख़राब हो गई
और बे हिसाब हो गई

ख़ार ख़ार हो गई थी
यक-ब-यक गुलाब हो गई

ज़ुल्फ़ की घटा खुली अभी
हाए महताब हो गई

देखते ही खो गया उसे
इस क़दर शराब हो गई

दोस्तों की बात मान ली
साँस भी अज़ाब हो गई

कल तलक दबी दबी रही
आज इंक़लाब हो गई

शाइ'रों ने टाँक दी चुनर
शाइ'री शबाब हो गई