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ज़िंदगी ख़ार-ज़ार में गुज़री | शाही शायरी
zindagi Khaar-zar mein guzri

ग़ज़ल

ज़िंदगी ख़ार-ज़ार में गुज़री

ज़रीना सानी

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ज़िंदगी ख़ार-ज़ार में गुज़री
जुस्तजू-ए-बहार में गुज़री

कुछ तो पैमान-ए-यार में गुज़री
और कुछ ए'तिबार में गुज़री

मंज़िल-ए-ज़ीस्त हम से सर न हुई
याद-ए-गेसू-ए-यार में गुज़री

फूल गिर्यां थे हर कली लर्ज़ां
जाने कैसी बहार में गुज़री

ज़िंदगानी तवील थी लेकिन
मौत के इंतिज़ार में गुज़री

आप से मिल के ज़िंदगी अपनी
जुस्तुजू-ए-क़रार में गुज़री

जो भी गुज़री बुरी भली 'सानी'
आप के इख़्तियार में गुज़री