ज़िंदगी के साज़ पर जलते हुए नग़्मात हैं
रक़्स-फ़रमा शो'ला-ए-दिल की तरह ज़र्रात हैं
हैं बगूलों की तरह तार-ए-नफ़स बहके हुए
ज़िंदगानी की जुनूँ-पर्वर सभी आयात हैं
नाज़-फ़रमा जिन की ताबानी पे थी अक़्ल-ए-बशर
आज वो ख़ुरशीद-ओ-अंजुम कितने कम-औक़ात हैं
हम कि थे दिलदारी-ए-मौज-ए-हवादिस पर निसार
शोर-ए-तूफ़ाँ से अयादत दिल-नशीं जज़्बात हैं
जिन को रखती थी मोअत्तर तेरी यादों की शमीम
तेग़ की झंकार में गुम वो हसीं दिन-रात हैं
वक़्त की मेहराब में इक शम-ए-नौ रौशन करें
राज़दान-ए-आरज़ू हम वारिस-ए-आफ़ात हैं
कौन ढूँडे गर्मी-ए-रुख़्सार-ए-ख़ूबाँ ऐ 'सरोश'
आतिश-ए-पैकार से शो'ला-फ़गन जज़्बात हैं
ग़ज़ल
ज़िंदगी के साज़ पर जलते हुए नग़्मात हैं
मतीन सरोश