ज़िंदगी के हसीं बहाने से
मौत मिलती रही ज़माने से
मौसम-ए-गुल ख़िज़ाँ-मिज़ाज सही
मर के निकलेंगे आशियाने से
इश्क़ की आग ऐ मआज़-अल्लाह
न कभी दब सकी दबाने से
रज़्म-ए-दैर-ओ-हरम से तंग आ कर
दिल लगाया शराब-ख़ाने से
फ़ाएदा क्या है बे-शुऊरों को
नग़्मा-ए-आरज़ू सुनाने से
जब ज़माने का ग़म उठा न सके
हम ही ख़ुद उठ गए ज़माने से
ग़ज़ल
ज़िंदगी के हसीं बहाने से
अनवर साबरी