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ज़िंदगी जीने का पहले हौसला पैदा करो | शाही शायरी
zindagi jine ka pahle hausla paida karo

ग़ज़ल

ज़िंदगी जीने का पहले हौसला पैदा करो

मंज़र भोपाली

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ज़िंदगी जीने का पहले हौसला पैदा करो
सिर्फ़ ऊँचे ख़ूबसूरत ख़्वाब मत देखा करो

दुख अँधेरों का अगर मिटता नहीं है ज़ेहन से
रात के दामन को अपने ख़ून से उजला करो

ख़ुद को पोशीदा न रक्खो बंद कलियों की तरह
फूल कहते हैं तुम्हें सब लोग तो महका करो

ज़िंदगी के नाम-लेवा मौत से डरते नहीं
हादसों का ख़ौफ़ ले कर घर से मत निकला करो

रहनुमा ये दर्स हम को दे रहे हैं आज-कल
बेच दो सच्चाइयाँ ईमान का सौदा करो

तैश में आने लगे तुम तो मिरी तन्क़ीद पर
इस क़दर हस्सास हो तो आइना देखा करो