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ज़िंदगी इक ख़्वाब है ये ख़्वाब की ताबीर है | शाही शायरी
zindagi ek KHwab hai ye KHwab ki tabir hai

ग़ज़ल

ज़िंदगी इक ख़्वाब है ये ख़्वाब की ताबीर है

उबैदुल्लह सिद्दीक़ी

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ज़िंदगी इक ख़्वाब है ये ख़्वाब की ताबीर है
हल्क़ा-ए-गेसू-ए-दुनिया पाँव की ज़ंजीर है

कुछ नहीं इस के सिवा मेरे तसर्रुफ़ में यहाँ
दिल का बस जितना इलाक़ा दर्द की जागीर है

पुतलियाँ आँखों की साकित हो गईं पढ़ते हुए
आसमाँ पर किस ज़बाँ में जाने क्या तहरीर है

मुझ को गोयाई पे उकसाया था दिल ने एक बार
आज तक होंटों पे क़ाएम लज़्ज़त-ए-तक़रीर है

अब न जाने किस तरफ़ ले जाएँ वहशी आँधियाँ
शाख़ से टूटा हुआ पत्ता बहुत दिल-गीर है

सब बहादुर हैं यहाँ ज़िक्र-ए-अजल होने तलक
बुज़-दिली इस को कहूँ या ख़ून की तासीर है