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ज़िंदगी है जेब-ओ-दामन पर गराँ अपनी जगह | शाही शायरी
zindagi hai jeb-o-daman par garan apni jagah

ग़ज़ल

ज़िंदगी है जेब-ओ-दामन पर गराँ अपनी जगह

रहबर जौनपूरी

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ज़िंदगी है जेब-ओ-दामन पर गराँ अपनी जगह
ख़्वाहिशें लेती हैं दिल में चुटकियाँ अपनी जगह

वक़्त के तूफ़ाँ में क़स्र-ए-संग ढह कर रह गए
हैं मगर मौजूद शीशे के मकाँ अपनी जगह

मैं समझता हूँ कि दोनों ही हैं जुज़्व-ए-कायनात
जंग-ओ-शर अपनी जगह अम्न-ओ-अमाँ अपनी जगह

कर दिए रौशन जुनूँ वालों ने अज़्मत के चराग़
अहल-ए-अक़्ल-ओ-होश की ख़ुश-फ़हमियाँ अपनी जगह

पा-ए-अक़्दस मोहसिन-ए-इंसानियत का चूम कर
हो गई है रश्क-ए-गर्दूं कहकशाँ अपनी जगह