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ज़िंदगी गुलशन में भी दुश्वार है तेरे बग़ैर | शाही शायरी
zindagi gulshan mein bhi dushwar hai tere baghair

ग़ज़ल

ज़िंदगी गुलशन में भी दुश्वार है तेरे बग़ैर

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

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ज़िंदगी गुलशन में भी दुश्वार है तेरे बग़ैर
इस चमन का फूल भी इक ख़ार है तेरे बग़ैर

ज़िंदगानी इश्क़ की नाकामियों में सर्फ़ की
ज़िंदगी का लुत्फ़ भी दुश्वार है तेरे बग़ैर

तेरी सूरत सामने होती तो मैं कहता ग़ज़ल
मुझ पे ज़ौक़-ए-शाइ'री इक बार है तेरे बग़ैर

साक़िया जब तू नहीं मैं ने भी छोड़ी मय-कशी
मय-कदे से मय से भी इंकार है तेरे बग़ैर

किस की सूरत देख कर पाए क़रार-ओ-चैन दिल
ईद भी 'सिद्दीक़' की बे-कार है तेरे बग़ैर