ज़िंदगी गो कुश्ता-ए-आलाम है
फिर भी राहत की उम्मीद-ए-ख़ाम है
हाँ अभी तेरी मोहब्बत ख़ाम है
तेरे दिल में काविश-ए-अंजाम है
इश्क़ है मैं हूँ दिल-ए-नाकाम है
इस के आगे बस ख़ुदा का नाम है
आ कहाँ है तू फ़रेब-ए-आरज़ू
आज नाकामी से लेना काम है
मैं वही हूँ दिल वही अरमाँ वही
एक धोका गर्दिश-ए-अय्याम है
अपने जी में ये कि दुनिया छोड़ दें
और दुनिया को हमीं से काम है
जल चुके चश्म-ए-अइज़्ज़ा में चराग़
सो भी जा 'मुल्ला' कि वक़्त-ए-शाम है
ग़ज़ल
ज़िंदगी गो कुश्ता-ए-आलाम है
आनंद नारायण मुल्ला