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ज़िंदगी ग़मगीन होती जा रही है | शाही शायरी
zindagi ghamgin hoti ja rahi hai

ग़ज़ल

ज़िंदगी ग़मगीन होती जा रही है

हसन निज़ामी

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ज़िंदगी ग़मगीन होती जा रही है
आरज़ू रंगीन होती जा रही है

चाँद तारे आसमानों में टँगे हैं
रात की तज़ईन होती जा रही है

ज़ुल्म फिर परवान चढ़ता जा रहा है
ज़ब्त की तौहीन होती जा रही है

सम्त-ए-मशरिक़ देखता हूँ मैं उजाला
रात की तक्फ़ीन होती जा रही है

शादमाँ सा है 'निज़ामी' आज-कल वो
रूह की तस्कीन होती जा रही है