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ज़िंदगी ग़म की आँच सह कोई | शाही शायरी
zindagi gham ki aanch sah koi

ग़ज़ल

ज़िंदगी ग़म की आँच सह कोई

अहमद रियाज़

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ज़िंदगी ग़म की आँच सह कोई
यूँ जली यूँ बुझी कि धूल हुई

हम ने भी जश्न-ए-गुल को देखा था
आज तक सोचते हैं भूल हुई

क्या करें अपनी इस तबीअ'त को
आप से मिल के भी मलूल हुई

हुस्न-ए-शीरीं रहा शिकार-ए-हवस
जेहद-ए-फ़रहाद बे-हुसूल हुई

हम हैं वो कुश्तगान-ए-शौक़ जिन्हें
सोहबत-ए-दार भी क़ुबूल हुई

ले सँभल ज़ुल्मतों के रखवाले
अपना अब रौशनी उसूल हुई

किस को हँसता मिला चमन में 'रियाज़'
ग़ुन्चग़ी किस की खिल के फूल हुई