EN اردو
ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना | शाही शायरी
zindagi di hai to jine ka hunar bhi dena

ग़ज़ल

ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना

मेराज फ़ैज़ाबादी

;

ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना
पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना

गुफ़्तुगू तू ने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना

मैं तो इस ख़ाना-बदोशी में भी ख़ुश हूँ लेकिन
अगली नस्लें तो न भटकें उन्हें घर भी देना

ज़ुल्म और सब्र का ये खेल मुकम्मल हो जाए
उस को ख़ंजर जो दिया है मुझे सर भी देना