ज़िंदगी दश्त-ए-बला हो जैसे
तुझ को पाने की सज़ा हो जैसे
तेरे चेहरे का सिमट कर खिलना
मेरी आँखों की दुआ हो जैसे
एक दुश्मन सा तिरा तन जाना
मज़हर-ए-ख़ू-ए-वफ़ा हो जैसे
सब तिरी मदह पे मजबूर हुए
हर्फ़-ए-हक़-गोई ख़ता हो जैसे
ग़ज़ल
ज़िंदगी दश्त-ए-बला हो जैसे
याक़ूब राही