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ज़िंदगी चाक हुई क्या हो रफ़ू की सूरत | शाही शायरी
zindagi chaak hui kya ho rafu ki surat

ग़ज़ल

ज़िंदगी चाक हुई क्या हो रफ़ू की सूरत

ख़ालिद जमाल

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ज़िंदगी चाक हुई क्या हो रफ़ू की सूरत
मिल गई ख़ाक में अब ज़ौक़-ए-नुमू की सूरत

हौसले क्या हुए चढ़ते हुए दरियाओं के
रेगज़ारों में कहाँ खो गई जू की सूरत

ख़्वाहिश-ए-सीम-बदन से हुआ वहशत का नुज़ूल
नश्शा-ए-जिस्म ने क्या कर दी लहू की सूरत

दुख-भरी शाम के नेज़े पे सिसकते हुए लोग
ज़र्रे ज़र्रे से टपकती मन-ओ-तू की सूरत

ज़ाइक़े तल्ख़ हुए आँख से वहशत टपकी
कौन याद आया 'जमाल' आज अदू की सूरत