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ज़िंदगी और मौत का यूँ राब्ता रह जाएगा | शाही शायरी
zindagi aur maut ka yun rabta rah jaega

ग़ज़ल

ज़िंदगी और मौत का यूँ राब्ता रह जाएगा

शकील सरोश

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ज़िंदगी और मौत का यूँ राब्ता रह जाएगा
मक़्तलों को जाने वाला रास्ता रह जाएगा

ख़ुश्क हो जाएँगी आँखें और छट जाएगा अब्र
ज़ख़्म-ए-दिल वैसे का वैसा और हरा रह जाएगा

बुझ चुकी होंगी तुम्हारे घर की सारी मिशअलें
और तो लोगों में शमएँ बाँटता रह जाएगा

मुझ से ले जाएगा इक इक चीज़ वो जाते हुए
लेकिन इस का नाम आँखों में लिखा रह जाएगा

फूल में मौजूद रहने से है ख़ुशबू का वक़ार
फूल में ख़ुशबू नहीं होगी तो क्या रह जाएगा

यादगार-ए-इश्क़ ऐसी छोड़ जाऊँगा 'सरोश'
हुस्न हैरानी से मुझ को देखता रह जाएगा