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ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब' | शाही शायरी
zindagi apni jab is shakl se guzri ghaalib

ग़ज़ल

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'

मिर्ज़ा ग़ालिब

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ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे