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ज़िंदगानी को फ़न के नाम किया | शाही शायरी
zindagani ko fan ke nam kiya

ग़ज़ल

ज़िंदगानी को फ़न के नाम किया

कृष्ण गोपाल मग़मूम

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ज़िंदगानी को फ़न के नाम किया
काम करना था मैं ने काम किया

इल्म ही की शराब पी झुक कर
ख़ुद को हरगिज़ न वक़्फ़-ए-जाम किया

ग़म हुआ मेरी ज़िंदगी का मदार
इस क़दर ग़म का एहतिराम किया

जैसे माशूक़ से हो रू-ए-सुख़न
ज़िंदगी तुझ से यूँ कलाम किया

ख़ाक छानी जो फ़न के सहरा की
हम ने ज़ौक़-ए-जुनूँ को आम किया

कामिलान-ए-सुख़न को पढ़ पढ़ कर
शेर-गोई में कुछ तो नाम किया

अपने फ़न पर न आँच आने दी
उम्र भर फ़न का एहतिराम किया

कोई मंज़िल न थी जो सर न हुई
जब भी हिम्मत को तेज़-गाम किया

हुस्न को मैं ने टूट कर चाहा
हुस्न के दिल में भी क़याम किया

फ़न में मुझ जैसी जिस ने काविश की
मैं ने दिल से उसे सलाम किया

उम्र भर शाएरी जो की मग़्मूम
मैं ने गुमनामियों में नाम किया