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ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की | शाही शायरी
zindagani ka koi bab samajh lo laDki

ग़ज़ल

ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की

त्रिपुरारि

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ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
भूल ही जाओ मुझे ख़्वाब समझ लो लड़की

इश्क़ करने की है ख़्वाहिश ये मैं समझा लेकिन
तुम मिरे जिस्म के आदाब समझ लो लड़की

वस्ल की रात वो मैं ने जिसे ता'मीर किया
हसरत-ए-इश्क़ की मेहराब समझ लो लड़की

तुम ने बरसात के मौसम में जिसे देखा था
वो है सूखा हुआ तालाब समझ लो लड़की

इश्क़ इंसान में औरत को जगा देता है
लोग हो जाते हैं शादाब समझ लो लड़की

मेरी बंजर हुई आँखों पे यक़ीं मत करना
ये भी ला सकती हैं सैलाब समझ लो लड़की

आज कल तुम जो ये महसूस किया करती हो
तजरबा है कोई नायाब समझ लो लड़की

ये जो दीवान मिरे नाम से छप कर आया
तुम इसे ज़ेहन का ख़ूनाब समझ लो लड़की