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ज़िंदगानी हँस के तय अपना सफ़र कर जाएगी | शाही शायरी
zindagani hans ke tai apna safar kar jaegi

ग़ज़ल

ज़िंदगानी हँस के तय अपना सफ़र कर जाएगी

सबा इकराम

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ज़िंदगानी हँस के तय अपना सफ़र कर जाएगी
यूँ अजल का मो'जिज़ा इक रोज़ सर कर जाएगी

क्या ख़बर थी चाह उस की दिल में घर कर जाएगी
मुझ को ख़ुद मेरे ही अंदर दर-ब-दर कर जाएगी

पहले अपना ख़ूँ तो भर दूँ ज़िंदगी की माँग में
जब उसे जाना ही ठहरा बन सँवर कर जाएगी

फूल ले जाएगी सारे तोड़ कर ख़्वाबों के वो
मेरी शाख़-ए-ज़िंदगी को बे-समर कर जाएगी

आएगी इक रोज़ वो शब की सियाही ओढ़ कर
मेरी सुब्ह-ए-ज़ीस्त को रौशन सहर कर जाएगी

रोक लो इस दर्द की देवी से हैं सब रौनक़ें
ये गई गर रूठ कर दिल को खंडर कर जाएगी

लोग कहते हैं कि वो लड़की सलीक़ा-मंद है
आ गई इस घर में तो इस घर को घर कर जाएगी