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ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत | शाही शायरी
zinda rahne ke tazkire hain bahut

ग़ज़ल

ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत

साक़ी फ़ारुक़ी

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ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत
मरने वालों में जी उठे हैं बहुत

उन की आँखों में ख़ूँ उतर आया
क़ैदियों पर सितम हुए हैं बहुत

उस के वारिस नज़र नहीं आए
शायद उस लाश के पते हैं बहुत

जागते हैं तो पाँव में ज़ंजीर
वर्ना हम नींद में चले हैं बहुत

जिन के साए में रात गुज़री है
उन सितारों ने दुख दिए हैं बहुत

तुझ से मिलने का रास्ता बस एक
और बिछड़ने के रास्ते हैं बहुत