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ज़िंदा रहने का तक़ाज़ा नहीं छोड़ा जाता | शाही शायरी
zinda rahne ka taqaza nahin chhoDa jata

ग़ज़ल

ज़िंदा रहने का तक़ाज़ा नहीं छोड़ा जाता

अहमद कामरान

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ज़िंदा रहने का तक़ाज़ा नहीं छोड़ा जाता
हम ने तुझ को नहीं छोड़ा नहीं छोड़ा जाता

ऐन मुमकिन है तिरे हिज्र से मिल जाए नजात
क्या करें यार ये सहरा नहीं छोड़ा जाता

छोड़ जाती है बदन रूह भी जाते जाते
क़ैद से कोई भी पूरा नहीं छोड़ा जाता

इस क़दर टूट के मिलने में है नुक़सान कि जब
खेत प्यासे हों तो दरिया नहीं छोड़ा जाता

छोड़ना तुझ को मिरी जाँ है बहुत ब'अद की बात
हम से तो शहर भी तेरा नहीं छोड़ा जाता

रौशनी ख़ूब है लेकिन मिरे हय्युन-ओ-क़य्यूम
यार अँधेरे में अकेला नहीं छोड़ा जाता