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ज़िंदा हुआ है आज तू मरने के ब'अद भी | शाही शायरी
zinda hua hai aaj tu marne ke baad bhi

ग़ज़ल

ज़िंदा हुआ है आज तू मरने के ब'अद भी

सय्यद अारिफ़

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ज़िंदा हुआ है आज तू मरने के ब'अद भी
आया है पास बाढ़ उतरने के ब'अद भी

किन पानियों की ओर मुझे प्यास ले चली
नीले समुंदरों में उतरने के ब'अद भी

नंगी हक़ीक़तों से पड़ा वास्ता हमें
शीशों से अक्स अक्स गुज़रने के ब'अद भी

काली रुतों के ख़ौफ़ ने जीने नहीं दिया
दरिया से मौज मौज उभरने के ब'अद भी

हर लम्हा ज़िंदगी को नया रूप चाहिए
इक बोझ बन गई है सँवरने के ब'अद भी

आँखों में मेरी जागती रातों का कर्ब है
हर ज़ख़्म तेरी याद का भरने के ब'अद भी