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ज़िक्र शब्बीर से निकल आया | शाही शायरी
zikr shabbir se nikal aaya

ग़ज़ल

ज़िक्र शब्बीर से निकल आया

राहत सरहदी

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ज़िक्र शब्बीर से निकल आया
ख़ून तहरीर से निकल आया

है ग़रीबी की फ़स्ल-ए-गुल कि समर
छत के शहतीर से निकल आया

रक़्स में यूँ लगे मुझे जैसे
जिस्म ज़ंजीर से निकल आया

मेरी क़िस्मत तो देखिए साहब
ख़्वाब ताबीर से निकल आया

ले के अपनी कमान-ओ-तेग़-ओ-सिपर
साया-ए-पीर से निकल आया

उज़्र-ए-तख़रीब-गर पस-ए-पर्दा
शौक़-ए-ता'मीर से निकल आया

मेरी तन्हाई बाँटने 'राहत'
अक्स तस्वीर से निकल आया