EN اردو
ज़िक्र हर सुब्ह ओ शाम है तेरा | शाही शायरी
zikr har subh o sham hai tera

ग़ज़ल

ज़िक्र हर सुब्ह ओ शाम है तेरा

नाजी शाकिर

;

ज़िक्र हर सुब्ह ओ शाम है तेरा
विर्द-ए-आशिक़ कूँ नाम है तेरा

मत कर आज़ाद दाम-ए-ज़ुल्फ़ सीं दिल
बाल-बाँधा ग़ुलाम है तेरा

लश्कर-ए-ग़म ने दिल सीं कूच किया
जब से इस में मक़ाम है तेरा

जाम-ए-मय का पिलाना है बे-रंग
शौक़ जिन कूँ मुदाम है तेरा

आज 'नाजी' से रम न कर ऐ शोख़
देख मुद्दत सीं राम है तेरा