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ज़िक्र-ए-तूफ़ाँ भी अबस है मुतमइन है दिल मिरा | शाही शायरी
zikr-e-tufan bhi abas hai mutmain hai dil mera

ग़ज़ल

ज़िक्र-ए-तूफ़ाँ भी अबस है मुतमइन है दिल मिरा

रशीद शाहजहाँपुरी

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ज़िक्र-ए-तूफ़ाँ भी अबस है मुतमइन है दिल मिरा
नाख़ुदा तुम हो तो फिर दरिया मिरा साहिल मिरा

रहनुमा-ए-ज़िंदगी है इज़्तिराब-ए-दिल मिरा
चल रहा है कारवाँ मंज़िल पस-ए-मंज़िल मिरा

क़िस्सा-ए-मंसूर हो या दास्तान-ए-कोहकन
जो फ़साना देखिए इक बाब है शामिल मिरा

मिल रहा है ज़िंदगी को आज उनवाँ सही
मुन्फ़इल क्यूँ हो नसीब-ए-दुश्मनाँ क़ातिल मिरा

चंद ज़र्रे ख़ाक-ए-आदम से अज़ल में बच गए
फ़ितरत-ए-मा'सूम ने इन से बनाया दिल मिरा

आफ़ियत है मेरी फ़ितरत के मुनाफ़ी ऐ 'रशीद'
वर्ना आया था सफ़ीना जानिब-साहिल मिरा