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ज़िक्र-ए-हू चार सू करें कैसे | शाही शायरी
zikr-e-hu chaar su karen kaise

ग़ज़ल

ज़िक्र-ए-हू चार सू करें कैसे

मंज़र मुफ़्ती

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ज़िक्र-ए-हू चार सू करें कैसे
हर्फ़-ए-हक़ रू-ब-रू करें कैसे

आ गई सतह-ए-आब तक काई
साफ़ ये आबजू करें कैसे

आश्नाई रही न रुस्वाई
ख़ूँ-चकाँ गुफ़्तुगू करें कैसे

चश्म-ए-तर में लहू की बूँद नहीं
जान-ए-मन हम वज़ू करें कैसे

हाथ छलनी हैं पाँव ज़ख़्मी हैं
जम्अ बिखरे सुबू करें कैसे

जाँ-कनी ही रही न मय-नोशी
'मंज़र' अब हाव-हू करें कैसे