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ज़िक्र भी उस से क्या भला मेरा | शाही शायरी
zikr bhi us se kya bhala mera

ग़ज़ल

ज़िक्र भी उस से क्या भला मेरा

जौन एलिया

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ज़िक्र भी उस से क्या भला मेरा
उस से रिश्ता ही क्या रहा मेरा

आज मुझ को बहुत बुरा कह कर
आप ने नाम तो लिया मेरा

आख़िरी बात तुम से कहना है
याद रखना न तुम कहा मेरा

अब तो कुछ भी नहीं हूँ मैं वैसे
कभी वो भी था मुब्तला मेरा

वो भी मंज़िल तलक पहुँच जाता
उस ने ढूँडा नहीं पता मेरा

तुझ से मुझ को नजात मिल जाए
तो दुआ कर कि हो भला मेरा

क्या बताऊँ बिछड़ गया याराँ
एक बिल्क़ीस से सबा मेरा