EN اردو
ज़ीस्त की आगही का हासिल है | शाही शायरी
zist ki aagahi ka hasil hai

ग़ज़ल

ज़ीस्त की आगही का हासिल है

निसार तुराबी

;

ज़ीस्त की आगही का हासिल है
दर्द ही शाइरी का हासिल है

है ख़िरद भी ख़िरद के नर्ग़े में
इश्क़ ख़ुद गुमरही का हासिल है

ज़िंदगी का सबात है इस में
ये जो आँसू हँसी का हासिल है

यूँ तिरा पास से गुज़र जाना
उम्र की बे-रुख़ी का हासिल है

पूछती है सबा गुलिस्ताँ से
फूल क्यूँ ताज़गी का हासिल है

लूट लेती है क़ाफ़िले कैसे
रात जब बंदगी का हासिल है

कब ये जानेगा आदमी जाने
आदमी आदमी का हासिल है

है तरन्नुम सदा के पर्दों में
नग़्मगी बाँसुरी का हासिल है

सोच का सम्त रह नहीं सकती
शेर आवारगी का हासिल है

इस क़दर पास आ के मत बैठो
क़ुर्ब बेगानगी का हासिल है

तू मिरे रत-जगों की मंज़िल है
दिन की दीवानगी का हासिल है