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ज़ीस्त करना दर-ए-इदराक से बाहर है अभी | शाही शायरी
zist karna dar-e-idrak se bahar hai abhi

ग़ज़ल

ज़ीस्त करना दर-ए-इदराक से बाहर है अभी

अक़ील अब्बास जाफ़री

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ज़ीस्त करना दर-ए-इदराक से बाहर है अभी
ये सितारा मिरे अफ़्लाक से बाहर है अभी

ढूँडते हैं उसी नश्शे को सभी बादा-गुसार
एक नश्शा जो रग-ए-ताक से बाहर है अभी

एक ही लम्हे में तस्ख़ीर करेगी उसे आँख
पर वो लम्हा मिरे अफ़्लाक से बाहर है अभी

कुछ मिरे चाक-ए-गरेबाँ को ख़बर हो शायद
एक गर्दिश जो मिरे चाक से बाहर है अभी

बस वही अश्क मिरा हासिल-ए-गिर्या है 'अक़ील'
जो मिरे दीदा-ए-नमनाक से बाहर है अभी