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ज़िदों को अपनी तराशो और उन को ख़्वाब करो | शाही शायरी
zidon ko apni tarasho aur un ko KHwab karo

ग़ज़ल

ज़िदों को अपनी तराशो और उन को ख़्वाब करो

मदन मोहन दानिश

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ज़िदों को अपनी तराशो और उन को ख़्वाब करो
फिर उस के बा'द ही मंज़िल का इंतिख़ाब करो

मोहब्बतों में नए क़र्ज़ चढ़ते रहते हैं
मगर ये किस ने कहा है कभी हिसाब करो

तुम्हें ये दुनिया कभी फूल तो नहीं देगी
मिले हैं काँटे तो काँटों को ही गुलाब करो

सियाह रातो चमकती नहीं है यूँ तक़दीर
उठाओ अपने चराग़ों को माहताब करो

कई सदाएँ ठिकाना तलाश करती हुई
फ़ज़ा में गूँज रही हैं उन्हें किताब करो

किसी के रंग में ढलना ही है अगर 'दानिश'
तो अपने आप को थोड़ा बहुत ख़राब करो