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ज़ेर-ए-लब उन का मुस्कुरा देना | शाही शायरी
zer-e-lab un ka muskura dena

ग़ज़ल

ज़ेर-ए-लब उन का मुस्कुरा देना

जिगर जालंधरी

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ज़ेर-ए-लब उन का मुस्कुरा देना
दिल में शहनाइयाँ बजा देना

जाने वाले ये बात याद रहे
हम को आसाँ नहीं भुला देना

कहीं बे-आसरा न कर दे हमें
इस क़दर तेरा आसरा देना

हम को रोने की तो इजाज़त दो
अगर आता नहीं हँसा देना

हो के नाकाम ना-उमीद न हों
तू मुझे इतना हौसला देना

लाख 'हातिम' हो कोई लाख करन
कौन दे सकता है तिरा देना

सौ बहारों की है बहार 'जिगर'
उन का रह रह के मुस्कुरा देना