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ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे | शाही शायरी
zehn ki qaid se aazad kiya jae use

ग़ज़ल

ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे

सालिम सलीम

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ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे
जिस को पाना नहीं क्या याद किया जाए उसे

तंग है रूह की ख़ातिर जो ये वीराना-ए-जिस्म
तुम कहो तो अदम-आबाद किया जाए उसे

ज़िंदगी ने जो कहीं का नहीं रक्खा मुझ को
अब मुझे ज़िद है कि बर्बाद किया जाए उसे

ये मिरा सीना-ए-ख़ाली छलक उट्ठेगा अभी
मेरे अंदर अगर ईजाद किया जाए उसे

वो गली पूछती है दर-ब-दरी के अहवाल
हाँ तो फिर वाक़िफ़-ए-रूदाद किया जाए उसे