ज़ेहन और दिल में फ़ासला ही रहा
वक़्त ज़ख़्मों से खेलता ही रहा
उम्र भर एहतियात के बा वस्फ़
हम पे इल्ज़ाम-ए-कम-निगाही रहा
हम जिसे दर्द-आश्ना समझे
उम्र भर सूरत-आश्ना ही रहा
ख़त-ए-अब्यज़ नज़र का धोका था
शब का अंजाम तो सियाही रहा

ग़ज़ल
ज़ेहन और दिल में फ़ासला ही रहा
सईदुज़्ज़माँ अब्बासी