ज़ेब उस को ये आशोब-ए-गदाई नहीं देता 
दिल मशवरा-ए-नासिया-साई नहीं देता 
किस धुँद की चादर में है लिपटी कोई आवाज़ 
दस्तक के सिवा कुछ भी सुनाई नहीं देता 
है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँ 
आँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता 
आलम भी क़फ़स रंग है ऐसा कि नज़र को 
इस दाम-ए-तहय्युर से रिहाई नहीं देता 
यादों को सुला देता है साए में शजर के 
वो हौसला-ए-दर्द-ए-रसाई नहीं देता 
दिल उस का हथेली पे है मेरे लिए लेकिन 
हाथों में मिरे दस्त-ए-हिनाई नहीं देता 
आराइश-ए-जाँ के लिए काफ़ी नहीं वहशत 
मुझ को तो कोई ज़ख़्म दिखाई नहीं देता 
इस इश्क़ में कुछ शाइबा-ए-हिर्स भी होगा 
मैं क़ुव्वत-ए-बातिन की सफ़ाई नहीं देता 
रौशन है शब-ए-हिज्र ब-अंदाज़-ए-तअल्लुक़ 
वो मेहर-ए-नज़र दाग़-ए-जुदाई नहीं देता
        ग़ज़ल
ज़ेब उस को ये आशोब-ए-गदाई नहीं देता
सय्यद अमीन अशरफ़

