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ज़वाल-ए-शब में किसी की सदा निकल आए | शाही शायरी
zawal-e-shab mein kisi ki sada nikal aae

ग़ज़ल

ज़वाल-ए-शब में किसी की सदा निकल आए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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ज़वाल-ए-शब में किसी की सदा निकल आए
सितारा डूबे सितारा-नुमा निकल आए

अजब नहीं कि ये दरिया नज़र का धोका हो
अजब नहीं कि कोई रास्ता निकल आए

ये किस ने दस्त-ए-बुरीदा की फ़स्ल बोई थी
तमाम शहर में नख़्ल-ए-दुआ निकल आए

बड़ी घुटन है चराग़ों का क्या ख़याल करूँ
अब इस तरफ़ कोई मौज-ए-हवा निकल आए

ख़ुदा करे सफ़-ए-सरदादगाँ न हो ख़ाली
जो मैं गिरूँ तो कोई दूसरा निकल आए