EN اردو
ज़ौक़ रखता है फ़िक्रमंद तुझे | शाही शायरी
zauq rakhta hai fikrmand tujhe

ग़ज़ल

ज़ौक़ रखता है फ़िक्रमंद तुझे

मोनी गोपाल तपिश

;

ज़ौक़ रखता है फ़िक्रमंद तुझे
हो के रहना है सर-बुलंद तुझे

शायरी का सराब तय करना
कौन मानेगा होश-मंद तुझे

ये तिरा रख-रखाव ये बिखरन
लोग करने लगे पसंद तुझे

फिर कोई इश्क़ है वबाल-ए-जाँ
ले उड़ी हुस्न की कमंद तुझे

गर ग़ज़ल ही नहीं 'तपिश' फिर क्या
हो गया क्या ये अक़्ल-मंद तुझे