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ज़र्द पत्तों का ग़ुबार उड़ता हुआ | शाही शायरी
zard patton ka ghubar uDta hua

ग़ज़ल

ज़र्द पत्तों का ग़ुबार उड़ता हुआ

ख़ुर्शीद तलब

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ज़र्द पत्तों का ग़ुबार उड़ता हुआ
ख़ेमा-ए-गुल में शरार उड़ता हुआ

बह चुकी गदराए जिस्मों की शराब
लम्स-ए-अव्वल का ख़ुमार उड़ता हुआ

सब ने देखा और सब ख़ामोश थे
एक सूफ़ी का मज़ार उड़ता हुआ

लग चुकी है सब्ज़ दरियाओं में आग
भाप बन कर आबशार उड़ता हुआ

मुतमइन दीवार पर है छिपकली
ख़ुद ही आएगा शिकार उड़ता हुआ

उस ने आ कर हाथ माथे पर रखा
और मिनटों में बुख़ार उड़ता हुआ