EN اردو
ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं | शाही शायरी
zara si der ko chamka tha wo sitara kahin

ग़ज़ल

ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं

आफ़ताब हुसैन

;

ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं
ठहर गया है नज़र में वही नज़ारा कहीं

कहीं को खींच रही है कशिश ज़माने की
बुला रहा है तिरी आँख का इशारा कहीं

ये लहर बहर जो मिलती है हर तरफ़ दिल में
बदल गया ही न हो ज़िंदगी का धारा कहीं

ये सोच कर भी तो उस से निबाह हो न सका
किसी से हो भी सका है मिरा गुज़ारा कहीं

रवाँ-दवाँ रहो हर-चंद 'आफ़्ताब-हुसैन'
दिखाई देता नहीं दूर तक किनारा कहीं