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ज़रा सी देर जो ख़ौफ़-ए-दवाम ख़त्म हुआ | शाही शायरी
zara si der jo KHauf-e-dawam KHatm hua

ग़ज़ल

ज़रा सी देर जो ख़ौफ़-ए-दवाम ख़त्म हुआ

मुसव्विर सब्ज़वारी

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ज़रा सी देर जो ख़ौफ़-ए-दवाम ख़त्म हुआ
ये मत समझ कि ये हू का मक़ाम ख़त्म हुआ

कहाँ गया जरस-ए-कर्बला बुला के मुझे
कि रास्ते में मिरा घर तमाम ख़त्म हुआ

न तेरी प्यास ने दरियाओं से ही बैअ'त की
न पानियों पे लिखा तेरा नाम ख़त्म हुआ

दरख़्त सारे समेटे हुए हैं शाख़-ए-ख़ुलूस
चलो कि पहले सफ़र का क़याम ख़त्म हुआ

चुनेगा सोख़्ता ख़ेमों की राख और कोई
लगा के आग हवा का तो काम ख़त्म हुआ

सर-ए-उफ़ुक़ कोई तारा न बे-नवा कोई चीख़
ये किन तबाहियों पे रंज-ए-शाम ख़त्म हुआ