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ज़मीन तंग है यारब कि आसमान है तंग | शाही शायरी
zamin tang hai yarab ki aasman hai tang

ग़ज़ल

ज़मीन तंग है यारब कि आसमान है तंग

शम्स रम्ज़ी

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ज़मीन तंग है यारब कि आसमान है तंग
ये क्या कि बंदों पे पैहम तेरा जहान है तंग

मिरे सवाल का कोई जवाब क्या देता
कि तेरे शहर में हर शख़्स की ज़बान है तंग

करूँ तो कैसे करूँ हर्फ़-ए-मुद्दआ आग़ाज़
ग़ज़ल के वास्ते लफ़्ज़ों का आसमान है तंग

फ़ज़ा में उड़ते परिंदे की ख़ैर हो यारब
कि उस का तीर बड़ा है मगर कमान है तंग

निज़ाम नौ में नए तजरबात कैसे करें
दिल-ओ-दिमाग़ की हर शख़्स के उड़ान है तंग

मिरे ख़ुदा उसे आज़ाद कर ये अच्छा है
हिसार-ए-जिस्म में हर वक़्त मेरी जान है तंग

अगरचे ख़ुद वो बहुत तंग-ज़ेहन-ओ-दिल है मगर
अमीर-ए-शहर को दुनिया का हर मकान है तंग

परिंदे चीख़ रहे हैं ये किस की हिजरत पर
ये किस के वास्ते यारब तेरा जहान है तंग

सुकूँ-नवाज़ हैं टूटी हवेलियाँ लेकिन
ये और बात कि शीशे का भी मकान है तंग

किसे सुनाऊँ मैं अपनी शिकस्त का क़िस्सा
वो लफ़्ज़ और वो लहजा वो दास्तान है तंग