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ज़मीं से उट्ठे हैं या आसमाँ से आए हैं | शाही शायरी
zamin se uTThe hain ya aasman se aae hain

ग़ज़ल

ज़मीं से उट्ठे हैं या आसमाँ से आए हैं

ख़्वाजा जावेद अख़्तर

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ज़मीं से उट्ठे हैं या आसमाँ से आए हैं
ये लोग शहर में जाने कहाँ से आए हैं

उन्हीं को हक़ है बहारों के ख़ैर मक़्दम का
गुज़र के जो किसी दौर-ए-ख़िज़ाँ से आए हैं

हदफ़ कोई हो कहीं हो यक़ीन है मुझ को
ये सारे तीर उसी की कमाँ से आए हैं

वहाँ से लौट के आने का दिल न करता था
पलट के शहर में अपने जहाँ से आए हैं

ये कौन लोग हैं मिलने के वास्ते हम से
इधर उधर से यहाँ से वहाँ से आए हैं