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ज़मीं पर सर-निगूँ बैठा हुआ हूँ | शाही शायरी
zamin par sar-nigun baiTha hua hun

ग़ज़ल

ज़मीं पर सर-निगूँ बैठा हुआ हूँ

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

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ज़मीं पर सर-निगूँ बैठा हुआ हूँ
और अपना रेज़ा रेज़ा चुन रहा हूँ

अगर उलझन नहीं कोई तो क्यूँ मैं
मुसलसल सोचता हूँ जागता हूँ

असीर-ए-रोज़-ओ-शब है ज़िंदगानी
मैं इस तकरार से उकता गया हूँ

मिरी उर्यानियों पर शोर क्यूँ है
अगर अंधों में नंगा हो गया हूँ

तुम अपनी रौशनी महफ़ूज़ रखना
तुम्हारे वास्ते मैं बुझ रहा हूँ

कहाँ तक भागता ऐ शहर वालो
सो अब मैं क़त्ल होने आ गया हूँ