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ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया | शाही शायरी
zamin par na rahe aasman ko chhoD diya

ग़ज़ल

ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया

फ़हीम शनास काज़मी

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ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया
तुम्हारे ब'अद ज़मान ओ मकाँ को छोड़ दिया

तबाह कर गया इक लम्हा-ए-ख़राब मुझे
कि मैं ने हल्क़ा-ए-आवारगाँ को छोड़ दिया

कहीं पनाह नहीं मिलती लम्हा भर के लिए
कि जब से महफ़िल-ए-दिल-दादगाँ को छोड़ दिया

बस एक कुंज-ए-ख़स-ओ-ख़ाक में सुकून मिला
सो मैं ने हल्क़ा-ए-सय्यारगाँ को छोड़ दिया

तुम्हारे ब'अद गुज़िश्ता रहा न हाल रहा
सो दिल ने ख़दशा-ए-आइंदगाँ को छोड़ दिया