ज़मीं पर फ़स्ल-ए-गुल आई फ़लक पर माहताब आया
सभी आए मगर कोई न शायान-ए-शबाब आया
मिरा ख़त पढ़ के बोले नामा-बर से जा ख़ुदा-हाफ़िज़
जवाब आया मिरी क़िस्मत से लेकिन ला-जवाब आया
उजाले गर्मी-ए-रफ़्तार का ही साथ देते हैं
बसेरा था जहाँ अपना वहीं तक आफ़्ताब आया
'शकील' अपने मज़ाक़-ए-दीद की तकमील क्या होगी
इधर नज़रों ने हिम्मत की उधर रुख़ पर नक़ाब आया
ग़ज़ल
ज़मीं पर फ़स्ल-ए-गुल आई फ़लक पर माहताब आया
शकील बदायुनी