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ज़मीन पाँव तले सर पे आसमान लिए | शाही शायरी
zamin panw tale sar pe aasman liye

ग़ज़ल

ज़मीन पाँव तले सर पे आसमान लिए

रफ़ीक़ संदेलवी

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ज़मीन पाँव तले सर पे आसमान लिए
निदा-ए-ग़ैब को जाता हूँ बहरे कान लिए

मैं बढ़ रहा हूँ किसी राद-ए-अब्र की जानिब
बदन को तर्क किए और अपनी जान लिए

ये मेरा ज़र्फ़ कि मैं ने असासा-ए-शब से
बस एक ख़्वाब लिया और चंद शम्अ-दान लिए

मैं सतह-ए-आब पे अपने क़दम जमा लूँगा
बदन की आग लिए और किसी का ध्यान लिए

मैं चल पड़ूँगा सितारों की रौशनी ले कर
किसी वजूद के मरकज़ को दरमियान लिए

परिंदे मेरा बदन देखते थे हैरत से
मैं उड़ रहा था ख़ला में अजीब शान लिए

क़लील वक़्त में यूँ मैं ने इर्तिकाज़ किया
बस इक जहान के अंदर कई जहान लिए

अभी तो मुझ से मेरी साँस भी थी ना-मानूस
कि दस्त-ए-मर्ग ने नेज़े बदन पे तान लिए

ज़मीं खड़ी है कई लाख नूरी सालों से
किसी हयात-ए-मुसलसल की दास्तान लिए