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ज़मीं की वुसअ'तों से आसमाँ तक | शाही शायरी
zamin ki wusaton se aasman tak

ग़ज़ल

ज़मीं की वुसअ'तों से आसमाँ तक

सत्यपाल जाँबाज़

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ज़मीं की वुसअ'तों से आसमाँ तक
कहानी अपनी जा पहुँची कहाँ तक

लगी थी आग जो सेहन-ए-चमन में
वो आ पहुँची हमारे आशियाँ तक

बता दे हम को इतना राहबर अब
भटकना है हमें आख़िर कहाँ तक

किसी के हुस्न का वो रो'ब तौबा
शिकायत रह गई आ कर ज़बाँ तक

चली थी बात मेरी दास्ताँ से
वो आ पहुँची तुम्हारी दास्ताँ तक

जो गुज़री है हमारी ज़िंदगी पर
न जाए वो हमारे कारवाँ तक

हदीस-ए-ज़िंदगी 'जाँबाज़' छेड़ो
हदीस-ए-शो'ला-ओ-शबनम कहाँ तक